परमहंस योगानन्द भारत के प्रथम योग गुरु थे जिनका उद्देश्य पश्चिम में रहकर योग की शिक्षा देना था। 1920 के दशक में जब उन्होंने सारे युनाइटेड स्टेट्स का भ्रमण किया. जिसे वे " आध्यात्मिक आन्दोलन" कहते थे, उनके उत्साही श्रोताओं से अमेरिका के विशालतम हॉल भर जाया करते थे।
उनका प्रारम्भिक असर वस्तुतः प्रभावशाली था. पर उनका स्थायी प्रभाव और भी अधिक महान है। सर्वप्रथम 1946 में छपी इस पुस्तक ने संसार में एक आध्यात्मिक क्रान्ति को प्रारम्भ कर, उसे निरन्तर प्रेरित किया है।
परमहंस योगनन्द के स्तर के संत अपने जीवन के अनुभवों का प्रत्यक्ष विवरण विरले ही लिखते हैं। अनेक धार्मिक परंम्पराओं के अनुयायी ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी को आध्यात्मिक साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना मानते हैं। गंभीरता से पूर्ण होने के बावजूद यह सौम्य हास्य, रुचिकर कहानियों और व्यावहारिक सामान्य समझ से भरपूर है।
1946 के मूल संस्करण का यह हिन्दी में प्रथम शब्दशः मुद्रण है। यद्यपि 1952 में लेखक की मृत्यु के बाद बाद के प्रकाशनों में किए गए अनेक संशोधनों के साथ दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं और 19 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है. कुछ हजार मूल प्रतियाँ संग्रहकर्ताओं के हाथों में बहुत समय पूर्व ही खो चुकी थी।
उनका प्रारम्भिक असर वस्तुतः प्रभावशाली था. पर उनका स्थायी प्रभाव और भी अधिक महान है। सर्वप्रथम 1946 में छपी इस पुस्तक ने संसार में एक आध्यात्मिक क्रान्ति को प्रारम्भ कर, उसे निरन्तर प्रेरित किया है।
परमहंस योगनन्द के स्तर के संत अपने जीवन के अनुभवों का प्रत्यक्ष विवरण विरले ही लिखते हैं। अनेक धार्मिक परंम्पराओं के अनुयायी ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी को आध्यात्मिक साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना मानते हैं। गंभीरता से पूर्ण होने के बावजूद यह सौम्य हास्य, रुचिकर कहानियों और व्यावहारिक सामान्य समझ से भरपूर है।
1946 के मूल संस्करण का यह हिन्दी में प्रथम शब्दशः मुद्रण है। यद्यपि 1952 में लेखक की मृत्यु के बाद बाद के प्रकाशनों में किए गए अनेक संशोधनों के साथ दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं और 19 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है. कुछ हजार मूल प्रतियाँ संग्रहकर्ताओं के हाथों में बहुत समय पूर्व ही खो चुकी थी।