सचमुच ईश्वर की खोज के लिए अलग से समय निकालने की ज़रूरत नहीं। जीवन की तमाम सक्रियताओं के बीच उसे पाया जा सकता है, क्योंकि वह एक चेतना है, कार्यकलाप नहीं है। व्यस्त जीवन से परमात्मा की खोज का कोई विरोध नहीं है। असल में, व्यस्त जीवन से अलग परमात्मा के लिए समय खोजने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारे व्यस्त जीवन में ही, तुम्हारे सब कुछ करने में ही - चाहे गिट्टी फोड़ो, चाहे मकान बनाओ, चाहे फ़ैक्टरी में कारख़ाना चलाओ, चाहे घर में रोटी बनाओ, चाहे कपड़े सीओ, चाहे वीणा बजाओ, चाहे चित्र बनाओ, कुछ भी करो - करने से परमात्मा की खोज का कोई विरोध नहीं है, क्योंकि परमात्मा की खोज एक नए प्रकार का करना नहीं है। वह एक नया एक्शन नहीं है। परमात्मा की खोज एक कांशसनेस है, एक चेतना है, एक्ट नहीं, डूइंग नहीं।