![Dhoop raat aur khidkiyan [hindi edition]](http://bestofusedbooks.com/cdn/shop/files/uyy_{width}x.jpg?v=1736403795)
लिखे जाने वाले शब्द को बालसुलभ निश्छलता के साथ इस तरह से तराशा जाए की उसकी आत्मा में विराजमान मातृत्व की पहरेदारी भी उजागर हो सके, तो ऐसे किसी प्रयास की पहचान डॉ. अतुल कटारिया कि कविताओं के रूप में कि जा सकती हैई अतुल की कविताओं का आकाश इतना समृद्ध और आत्मीय है की शब्दों को कृत्रिमता के पहरावे से बोझिल होने की मजबूरी नहीं झेलना पड़ती, वे अपने नैसर्गिक स्वरुप में ही अभिव्यक्ति की सीढ़ियां प्राप्त कर लेते हैं i
शायद यही कारण है कि अतुल की कविताओं में न तो पीपल का पत्ता कभी गायब होता या सूखकर आवाज़ें पैदा करता है और न ही चिड़ियों का सहचाहना या गोशाला की गंध और थ्रेशर से उड़कर सांसों का हिस्सा बनती गेहूं की भूसी हमारा पीछा छोड़ती है i