यह आत्मकथा परमहंस योगानन्द के बारे में तो है किंतु इस आत्मकथा में उन्होंने न केवल अपनी आध्यात्मिक साधना की यात्रा व उसके सोपान के परिलब्धि की चर्चा की है बल्कि इस यात्रा के दौरान विभिन्न महान योगियों व संतों के सान्निध्य व उनसे साक्षात्कार के बारे में भी चर्चा की है।