पुस्तक का कथानक एक ऐसी जिज्ञासु पुरुष के इर्द‑गिर्द घूमता है, जो अपने चारों ओर व्याप्त षड्यंत्र और कपट को देखकर समाज और स्वयं से द्वेष करने लगता है। अपने अस्तित्व और मानसिक दर्द से ऊबकर वह आत्महत्या तक का विचार करता है। लेकिन अंत में एक अप्रत्याशित मोड़ आता है, जो उसे जीवन की वास्तविकता से दोबारा जुड़ने का अवसर देता है। पुस्तक की गहराई और अंतर्मुखी दृष्टिकोण पाठक को जीवन‑मृत्यु, सत्य‑झूठ व अंतर्चेतना की भावनात्मक दुनिया में खींच ले जाती है ।
About The Author
हंसराज रहबर (9 मार्च 1913 – 23 जुलाई 1994) हिंदी व उर्दू के ख्यातनाम लेखक, कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक और अनुवादक थे। पंजाब के हरिआऊ संगवां (सुनाम ज़िला) में जन्मे रहबर ने लाहौर से बी.ए. और बाद में स्वतंत्र भारत में इतिहास में एम.ए. की पढ़ाई प्राप्त की। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और कई बार जेल भी गए। उन्होंने लगभग 20 उपन्यास, 10 कहानी-संग्रह एवं 17 आलोचनात्मक एवं समालोचनात्मक पुस्तकें लिखीं। उनकी प्रमुख कृतियों में नव क्षितिज, हम लोग, झूठ की मुस्कान, हाथ में हाथ, दिशाहीन, पंखहीन तितली, और बिना रीढ़ का आदमी शामिल हैं ।
रहबर की लेखनी में स्पष्टवादिता, राष्ट्रप्रेम, मार्क्सवादी दृष्टिकोण और सामाजिक‑राजनीतिक चेतना झलकती है। उन्होंने प्रेमचंद, गालिब, गांधी, नेहरू, भगत सिंह और विवेकानंद जैसी विभूतियों पर ग्रंथ लिखे और कई साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद भी किया।
यदि आप चाहते हैं, तो मैं आपको इस उपन्यास के मुख्य पात्र, शैली या किसी विशेष कहानी तत्व के बारे में भी विस्तार से बता सकता हूँ। बताइए!