भारत में राजा-महाराजाओं का नहीं बल्कि हमारे पुराण-पुरखों, ऋषि, मुनियों, ब्रह्मज्ञ, राज-ऋषियों तथा महान विचारों की महत्ता का इतिहास है। हमारे ऋषिगणों ने ‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे’ के सृष्टि विज्ञान के आधार पर भारत खण्ड पर भी गण पद्धति के समावेश का सफल प्रयत्न किया था। यही इस देश की विशेषता भी रही है, जिसके आधार पर विश्व में कई जगह इसको मान्यता भी मिली। किसी भी प्राचीन सभ्यता में घटनायें पहले घटती हैं और इतिहास बाद में लिखे जाते हैं, उनकी कोई तारीख या तिथि हम पुख्ता बयां नहीं कर सकते। अतः उन्हें लगभग या करीब जैसे शब्दों के सुरक्षा कवच का जामा पहनाया जाता है। खास तौर पर जहाँ साहित्य काव्य शैली में हो तो यह और भी कठिन हो जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में विषय को पूर्णतया शास्त्रानुगत रखते हुए, भाषा शैली को पुराणों की तथा कथा कहानियों की तरह रोचक बनाने का प्रयास किया गया है। आशा व उम्मीद है पुस्तक के माध्यम से कुछ रोचक, सत्य व महत्वपूर्ण गौरवान्वित करने वाली जानकारियाँ पाठकगण अवश्य जान पायेंगे। इस पुस्तक का आधार समय मनु है, जो करीब 8000 वर्ष पूर्व माना गया है किन्तु पुराणों के अनुसार इससे पूर्व आठ देवासुर संग्राम भी माने गये हैं। हमारे भारत में राक्षस, दैत्य, असुर, दानव आदि जातियाँ थीं या सभ्यतायें कह नहीं सकते, पर इनके साथ देवताओं के अक्सर युद्ध होते रहते थे। इसके साथ ही यक्ष, किन्नर, गंधर्व और अप्सरा जैसी अर्ध देवता जातियों का वर्णन भी पुराणों में आता है, हमारी संस्कृति में चार काल (युग) माने गये हैं। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। इन सब युगों को अलग रख, इस पुस्तक में यह विभाजन पौराणिकता को आधार बनाते संतों को समर्पित किया गया है।